रांची: झारखंड में परिसीमन (चुनावी क्षेत्रों के पुनर्गठन) को लेकर राजनीति गरमा गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस का आरोप है कि परिसीमन के बाद आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या घट सकती है, जिससे आदिवासी समुदायों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कमजोर होगा। विपक्ष का कहना है कि भाजपा नीत केंद्र सरकार इस प्रक्रिया के जरिए आदिवासी हितों को नुकसान पहुंचाना चाहती है।
हालांकि, भाजपा ने इन आरोपों को भ्रामक बताते हुए आश्वासन दिया है कि आदिवासी सीटों की संख्या घटने वाली नहीं है, बल्कि कुछ सीटों में वृद्धि भी हो सकती है। बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भी सक्रिय हो गया है और आदिवासी समुदायों के बीच संदेह दूर करने की रणनीति पर काम कर रहा है।
JMM इस मुद्दे को आक्रामक रूप से उठा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा प्रस्तावित बैठक में उठाने वाले हैं। JMM और कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा परिसीमन को आदिवासी राजनीतिक शक्ति को कमजोर करने के औजार के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जैसा कि पहले सीएनटी एक्ट और सरना कोड के मुद्दों के साथ हुआ था। JMM नेताओं का कहना है कि यदि आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव हुआ तो इससे झारखंड का राजनीतिक संतुलन प्रभावित होगा और आदिवासी नेतृत्व पर सीधा असर पड़ेगा।
वर्तमान में झारखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। विपक्ष का दावा है कि इन सीटों में कमी से भाजपा को सीधा लाभ होगा, क्योंकि आदिवासी बहुल क्षेत्र पारंपरिक रूप से JMM और कांग्रेस के मजबूत गढ़ रहे हैं। पिछले चुनाव में JMM-कांग्रेस गठबंधन ने 5 में से सभी आदिवासी लोकसभा सीटें और 28 में से 27 आदिवासी विधानसभा सीटें जीती थीं। विपक्ष का कहना है कि भाजपा परिसीमन के जरिए इन राजनीतिक समीकरणों को बदलने की रणनीति बना रही है।
इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि विपक्ष झूठा प्रचार कर रहा है। उन्होंने आश्वस्त किया कि झारखंड में आदिवासी अधिकार पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे और परिसीमन से आरक्षित सीटों की संख्या में कोई कमी नहीं होगी। भाजपा नेताओं ने JMM-कांग्रेस सरकार पर बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया, जिससे वे मानते हैं कि आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को नुकसान हो रहा है।
भाजपा के पक्ष को मजबूत करने के लिए संघ (RSS) ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। वरिष्ठ संघ पदाधिकारियों ने क्षेत्रीय नेताओं और आदिवासी समुदायों से चर्चा शुरू कर दी है। उनका उद्देश्य विपक्ष के प्रचार का जवाब देना और आदिवासियों को वास्तविक स्थिति से अवगत कराना है।
संविधान के अनुसार, परिसीमन की प्रक्रिया 2026 में प्रस्तावित है, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की नई सीमाएं जनसंख्या के आधार पर तय की जाएंगी। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या बदलेगी या नहीं। लेकिन जिस तरह भाजपा और विपक्ष इस मुद्दे को लेकर रणनीति बना रहे हैं, यह तय है कि आने वाले दिनों में यह झारखंड की राजनीति का बड़ा विषय बना रहेगा।