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राँची सभा

झामुमो महाधिवेशन में आदिवासी एजेंडा तय

झामुमो के 13वें महाधिवेशन में सरना कोड, जातीय जनगणना और आदिवासी अधिकारों पर जोर; हेमंत को मिल सकती है पार्टी की कमान।

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रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का 13वां केंद्रीय महाधिवेशन सोमवार को रांची के खेलगांव स्थित टाना भगत इंडोर स्टेडियम में शुरू हुआ। दो दिवसीय इस महाधिवेशन में झारखंड समेत देश के आठ से अधिक राज्यों से 3,500 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। झारखंड की सत्ता में काबिज झामुमो के इस आयोजन को पार्टी के राजनीतिक विस्तार और विचारधारात्मक मजबूती का प्रतीक माना जा रहा है।

गुरुजी की मौजूदगी और भावी भूमिका पर संकेत
महाधिवेशन की सबसे भावुक छवि तब दिखी जब पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शिबू सोरेन ‘गुरुजी’ अपनी पत्नी रूपी सोरेन के साथ मंच पर पहुंचे। उन्हें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व्हीलचेयर पर लेकर आए। इस दृश्य ने पार्टी की वैचारिक और पारिवारिक निरंतरता को सार्वजनिक मंच पर साकार कर दिया।

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, शिबू सोरेन के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए पार्टी उन्हें ‘संस्थापक संरक्षक’ का दर्जा देने की तैयारी में है। फिलहाल पार्टी संविधान में यह पद नहीं है, लेकिन महाधिवेशन में इसके लिए संशोधन किया जा सकता है। इससे पार्टी की कमान औपचारिक रूप से हेमंत सोरेन को सौंपे जाने की संभावना मजबूत हो गई है।

राजनीतिक प्रस्तावों में ‘आदिवासी पहचान’ पर जोर
वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी ने 16 सूत्री राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। प्रस्तावों में प्रमुख रूप से सरना धर्म कोड की मान्यतादेशव्यापी जातीय जनगणना27% ओबीसी आरक्षण, और 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग दोहराई गई।

झामुमो ने केंद्र की ओर से प्रस्तावित वक्फ अधिनियम में संशोधन को खारिज करते हुए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का संकल्प भी लिया। साथ ही झारखंड में निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75% आरक्षण सुनिश्चित करने की बात दोहराई गई।

पार्टी का राष्ट्रीय विस्तार और नई रणनीति
महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि झामुमो को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। इसके तहत दिल्ली में पार्टी का समन्वय एवं संपर्क कार्यालय खोला जाएगा। झामुमो बिहार, असम, बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में संगठनात्मक विस्तार कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की योजना पर काम कर रही है।

‘संविधान और लोकतंत्र’ के पक्ष में और ‘संघी सोच’ के खिलाफ
राज्यसभा सांसद महुआ माजी और सरफराज अहमद ने कहा कि झामुमो संविधान की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। पार्टी ने संघ और भाजपा की उन नीतियों का विरोध करने की बात कही जो संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण के माध्यम से लोकतंत्र को कमजोर कर रही हैं। पार्टी ने परिसीमन की वर्तमान प्रक्रिया का भी विरोध किया है जिससे आदिवासी प्रतिनिधित्व को नुकसान हो सकता है।

क्या बदलेगी झामुमो की दिशा और दशा?
महाधिवेशन का दूसरा दिन केंद्रीय समिति, कार्यकारिणी समिति और नए नेतृत्व के चुनाव के लिए अहम होगा। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि झामुमो, जो कभी एक आंदोलन था और अब सत्ता में है, क्या वह शासन की चुनौतियों और अपने मूल आदिवासी विचारधारा के बीच संतुलन बना पाएगा?

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