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राँची सभा

झारखंड के स्टार्टअप को स्मार्ट वॉटर टेक्नोलॉजी का पेटेंट मिला; ईको-बार्टर मॉडल की शुरुआत

आर्सेनिक प्रभावित गांवों से लेकर वैश्विक पहचान तक, TAP@APP ने IoT और गरिमा का मिश्रण कर स्वच्छ पानी, सतत आजीविका और भागीदारी और उद्देश्य द्वारा प्रेरित एक नई ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रदान की है।

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रांची: अब झारखंड के ग्रामीण इलाकों में एक्शन की शुरुआत हो चुकी है, जहां एक तकनीकी नवाचार ने ज़हरीले भूजल संकट से जूझ रहे लोगों को स्वच्छ पेयजल तक पहुँच प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाया है। एक स्टार्टअप TAP@APP ने एक स्मार्ट वॉटर सिस्टम विकसित किया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और मोबाइल कनेक्टिविटी को जोड़कर भूजल की गुणवत्ता की निगरानी और प्रबंधन करता है।

छह साल की मेहनत के बाद मिला पेटेंट

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर के साकेत कुमार और उनकी टीम द्वारा डिज़ाइन किया गया यह यंत्र पारंपरिक जल परीक्षण से कहीं आगे जाता है। यह पूर्वानुमान आधारित डायग्नोस्टिक और अलर्ट प्रदान करता है, जिससे समुदाय समय रहते कार्यवाही कर सकते हैं।

आज इस स्टार्टअप को इसके नवाचार के लिए एक राष्ट्रीय पेटेंट भी प्राप्त हुआ है। छह वर्षों की फील्ड वर्क और तकनीकी परिष्करण के बाद यह पेटेंट जल संकट से लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, खासकर ग्रामीण इलाकों के लिए।

कैसे काम करता है सिस्टम

इस सिस्टम में स्वदेशी इमेजिंग और टाइट्रेशन सेंसर का उपयोग किया गया है, जो AI-आधारित एनालिटिक्स के साथ मिलकर जल की गुणवत्ता की रीयल-टाइम रिपोर्ट देता है। यह आर्सेनिक और बैक्टीरिया जैसे प्रदूषकों की पहचान कर सकता है और मोबाइल या लोकल मॉनिटरिंग सेंटर को तुरंत अलर्ट भेजता है।

CEO साकेत कुमार कहते हैं, “हमने एक ऐसा समाधान कल्पित किया जो केवल जांच तक सीमित न हो, बल्कि रोकथाम की दिशा में कार्य करे। हमारा लक्ष्य था कि तकनीक को सस्ता, स्केलेबल और ज़रूरतमंदों तक पहुँचाया जाए।”

ईको-बार्टर मॉडल के जरिए सतत विकास

TAP@APP केवल तकनीक तक सीमित नहीं है। यह VBEPL की सामाजिक शाखा WaterBANK Foundation Trust के माध्यम से “BarterWATER for Sustainability” कार्यक्रम से जुड़ा है। इसमें ग्रामीणों को पर्यावरणीय कार्य जैसे कचरा पृथक्करण, बाँस से जल निकासी प्रणाली बनाना या बाँस उत्पादों की कारीगरी करने पर “रेनबो क्रेडिट्स” दिए जाते हैं।

इन क्रेडिट्स के बदले ग्रामीण परिवार 1,000 लीटर तक स्वच्छ पेयजल या स्थानीय बाँस उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।

पहला पायलट प्रोजेक्ट

इस नवाचार का पहला पायलट बिहार के डुमरिया पंचायत के पकरी गांव में किया गया था, जहां भूजल में लंबे समय से आर्सेनिक की समस्या रही है। इस सिस्टम में इस्तेमाल हुआ OAS (Oxidation Arsenic System) IIT खड़गपुर में विकसित किया गया था, जिसमें प्राकृतिक लेटराइट का उपयोग करके जल को शुद्ध किया जाता है।

अब VAS Bros Enterprises झारखंड के लोहरदगा इंडस्ट्रियल एरिया में OAS यूनिट्स के उत्पादन को स्केल करने की तैयारी कर रहा है, जिसमें JIADA ने भूमि सहयोग प्रदान किया है। इस पहल को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सहयोग मिल चुका है, जैसे Pan IIT USA, WIN Foundation, WHEELS Global Foundation, और HUSK Power Systems।

हर गाँव को मिले हक और हुनर

पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय और नेशनल बांस मिशन भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत बाँस आधारित रोजगार सृजन में सहयोग कर रहे हैं। साथ ही, NSDC (राष्ट्रीय कौशल विकास निगम) स्थानीय युवाओं—खासकर महिलाओं—को जल परीक्षण, सिस्टम मेंटेनेंस, और बाँस कारीगरी में प्रशिक्षण दे रहा है।

“यह केवल जल परियोजना नहीं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था परियोजना है,” साकेत कुमार कहते हैं। “यह हरे रोजगार, स्थानीय उद्योगों और सामुदायिक स्वामित्व को बढ़ावा देने की दिशा में कदम है।”

नीति आयोग और विज्ञान सलाहकार कार्यालय ने सराहा

इस पहल को नीति आयोग और प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय द्वारा भारत के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और पंचायती राज ढांचे के अनुरूप बताया गया है। TAP@APP को 2023 में न्यूयॉर्क में हुए UN जल सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।

गांववालों को मिला सम्मान और भागीदारी

इस कार्यक्रम ने ग्रामीणों के जल तक पहुँच के नजरिए को बदल दिया है। अब वे केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि विकास प्रक्रिया के भागीदार बन चुके हैं।

“असल में, यह सम्मान की बात है,” साकेत कुमार कहते हैं। “हर एक बूंद स्वच्छ पानी, जो पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी से अर्जित की गई है, आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक है।”

जैसे-जैसे जल संकट बढ़ रहा है और पारंपरिक अवसंरचना कमज़ोर साबित हो रही है, TAP@APP ग्रामीण सततता का एक नया मॉडल प्रस्तुत करता है—एक ऐसा मॉडल जो ऊपर से समाधान थोपने के बजाय समुदायों को सशक्त बनाता है, बूंद-बूंद, कार्य-कार्य।

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